सर्वपितृ अमावस्या के साथ होता हैं पितृपक्ष का समापन, जरूर करें इस दिन ये 5 काम

By: Ankur Thu, 30 Sept 2021 08:40:26

सर्वपितृ अमावस्या के साथ होता हैं पितृपक्ष का समापन, जरूर करें इस दिन ये 5 काम

पितृपक्ष जारी हैं जिसमें सभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हुए उनकी आत्मा को संतृप्त करते हैं। इन 15 दिनों में पितर धरती पर आते है और घर में विराजते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के साथ इस पितृपक्ष का समापन होता हैं। इस दिन को 'पितृविसर्जनी अमावस्या' के तौर पर भी जाना जाता हैं। भूले-बिसरे पितरों का भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध ककिया जाता हैं। इस दिन का बहुत महत्व होता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको कुछ ऐसे उपाय बताने जा रहे हैं जो सर्वपितृ अमावस्या के दिन जरूर किए जाने चाहिए।

पंचबलि कर्म

इस श्राद्ध में पंचबलि अर्थात गोबलि, श्वानबलि, काकबलि और देवादिबलि कर्म जरूर करें। अर्थात इन सभी के लिए विशेष मंत्र बोलते हुए भोजन सामग्री निकालकर उन्हें ग्रहण कराई जाती है। अंत में चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालने के बाद ही भोजन के लिए थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसा जाए। साथ ही जमई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा जरूर दें।

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तर्पण और पिंडदान

सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े। “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।'

गीता या गरूढ़ पुराण का पाठ

गरुढ़ पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। इसीलिए यह पुराण मृतक को सुनाया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरुढ़ पुराण के कुछ खास अध्यायों का पाठ करें या गीता का पाठ जरूर करें या घर में ही करवाएं।

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भगवान विष्णु सहित इन दिव्य पितरों की करें पूजा

पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं, यथा- अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बहिर्पद-गंधर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं। इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं। यही मृत्यु के बाद न्याय करती है। भगवान चित्रगुप्तजी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल हैं। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। अग्रिष्वात्त, बहिर्पद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं।

प्रायश्‍चित कर्म

इस दिन शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। lifeberrys हिंदी इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले विशेषज्ञ से संपर्क जरुर करें।)

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